समाज से शराब की फैशन उतारना जरुरी!
2016 मे शराब से दुनियाभर मे 30 लाख लोग मरे
------------------राजेश शर्मा
एल्कोहॉल का हनिकारक उपयोग दुनियाभर मे लोगों के स्वास्थ्य के लिए प्रमुख जोखिम कारकों मे से एक है जो मातृ और शिशु स्वास्थ्य ,संक्रामक रोग,(एचआइवी वायरल),हेपेटाइटिस,तपेदिक,गैर-संचारी बिमारियाँ,मानसिक स्वास्थ्य समेत , सतत विकास लक्ष्यों(एसडीजी) के कई स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों पर प्रत्यक्ष रुप से प्रभाव डालता है , सन् 2016 मे एल्कोहॉल के हानिकारक इस्तेमाल से दुनियाभर मे 30 लोगों की मौत हुई जो सभी तरह से होने वाली मौतों का 5.3 प्रतिशत है रिपोर्ट मे कहा गया है कि शराब का हानिकारक इस्तेमाल 200 से अधिक बीमारियों और चोटों की स्थितियों मे एक कारण रहा है।बावजूद इसके 2005 से 2016 तक दस वर्ष के दौरान भारत मे शराब की खपत प्रति व्यक्ति दोगुना होना चिंता का विषय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत मे शराब की खपत 2005 मे 2.4 लीटर से बढ़कर 2016 मे 5.7 हो गई है। जो चिंता का विषय है।
सवाल यह उठता है कि शराब की खपत भारत मे ही तेजी से क्यों बढ़ रही है जबकि इसके दुष्प्रभाव से अच्छीखासी आबादी वाकिफ है। रिपोर्ट की माने तो सन् 2025 मे भी भारत के लिए शुभ समाचार नहीं हैं ऐसे मे शराब के आत्मघाती चलन को रोकना सरकार के लिए कड़ी चुनौती है। गुजरात , बिहार की शराब बंदी से कोई फायदे की फिलहाल उम्मीद रखना बेमानी होगी क्योंकि पहले समाज से शराब की फैशन उतारना होगी और राज्यों को राजस्व हानि से सलीके के साँथ निपटना होगा।
सबसे बढ़ी बात तो यह है कि सरकार की तरफ से जो भी इस दिशा मे जागृति अभियान चलाए गए वो फेल साबित हुए यहां तक कि महिलाओं मे भी शराब की खपत का प्रतिशत बढ़ गया।
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