केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंन्द्र सिंह तोमर ने गुरुवार को कहा कि वह किसानों की मांगों के लिए न हां कह सकते हैं और ना ही ना कह सकते हैं। यह पहली बार था जब ऐसा संकेत आया कि केंद्र सरकार इनकी मांगों पर विचार कर सकती है। हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में पूछे गए प्रश्न कि क्या सरकार किसानों की मांगों पर विचार करेगी, पर कृषि मंत्री तोमर ने कहा, "अभी मैं इसके बारे में हां भी नहीं कह सकता और ना भी नहीं कह सकता।"
कृषि मंत्री और खाद्य मंत्री पियूष गोयल के साथ 13 नवंबर को हुई एक मीटिंग में किसान प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए 3 कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग की थी या या केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित एमएसपी के नीचे खरीद को गैरकानूनी घोषित करने की मांग की थी।
कृषि मंत्री तोमर ने कहा, "हाल ही में आए कानूनों का लक्ष्य कुछ और है। यह किसानों के हित में हैं। ये क्रय-विक्रय, कॉन्ट्रैक्ट कृषि आदि से जुड़े हैं। एमएसपी उनके विस्तार से बाहर है।" इन बिलों को लेकर सरकार अपनी बात पर डंटी है। सरकार के मुताबिक यह बदलाव बड़े खरीददारों को लाएंगे, सुपरमार्केट और निर्यातकों को उनके द्वार तक लेकर आएंगे। हालांकि किसान यूनियनों का कहना है कि नए कानूनों के तहत ऐसा हो सकता है कि सरकार गारंटीकृत मूल्यों पर अनाज खरीदना बंद कर दे, और उन्हें निजी खरीददीरों की दया पर निर्भर रहना पड़े। दूसरी ओर सरकार ने कहा है कि वह किसानों से अनाज खरीदना जारी रखेगी।
कृषि मंत्री तोमर ने कहा, "मोदी सरकार ने 2013-14 और 2020-21 के बीच चावल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को 43 प्रतिशत तक बढ़ाया है।" उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार की तुलना में एनडीए सरकार ने धान की सरकारी खरीद को दोगुना किया है। धान की कुल एमएसपी 2014-19 के बीच रु.4.34 लाख करोड़ बढ़ी है, जबकि 2009-14 तक यह सिर्फ रु. 2.88 लाख करोड़ ही थी। उन्होंने कहा, एमएसपी के लिए हमारी प्रतिबद्धता तय है। सरकारी खरीद का तंत्र जारी रहेगा। मैं अपने सभी किसान भाईयों से यह आग्रह करना चाहता हूं कि हम बातचीत से मामले को सुलझाने के लिए तैयार हैं। इसीलिए मैंने उन्हें 3 दिसंबर को बात करने के लिए आमंत्रित किया है।
आपको बता दें कि सरकार 23 तरह की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है और ज्यादातर फसलों को इन्हीं दामों पर खरीदती है। यह छोटे किसानों के लिए बहुत फायदा पहुंचाता है।
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